रविवार, 6 दिसंबर 2009


बाबरी मस्जिद - 6-Dec-1992


6-December-1992
तुझ  से महरूमी का ग़म सदयौं रूलाए गा मगर
अपने दीवानों को जीने का हुन्र देकर गयी !!!

शनिवार, 15 अगस्त 2009


यौम-ऐ-आज़ादी-ऐ-हिंद मुबारक !!



यौम--आज़ादी--हिंद आप तमाम दोस्तों को मुबारक हो !!

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलसिताँ हमारा ॥

ग़ुर्बत मे हो अगर हम रहता है दिल वतन मे
समझो वहीं हमे भी दिल है जहाँ हमारा ॥

परबत वो सब से ऊंचा हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा वो पासबाँ हमारा ॥

गोदी मे खेलती है इसकी हज़ारों नदिया
गुलशन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा ॥

ऐ आब ए रौद ए गंगा वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा ॥

मज़हब नही सिखाता आपस मे बैर रखना
हिन्दी है हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा ॥

युनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नामो-निशान हमारा ॥

कुछ बात है के हस्ती मिटती नही हमारी
सदियो रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा ॥

इक़्बाल! कोइ मेहरम अपना नही जहाँ मे
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा ॥

रविवार, 28 जून 2009


अमावस की रात



शाम होते ही सितारे और हम
एक ही चीज़ को ढूंढते हैं हम

दोनों के चहरे पर उदासी है
एक सा लगता है दोनों का ग़म

वह तो हैं आसमान में सरगर्दां
और सफ़र करते हैं ख़याल में हम

तारों के साथ बहुत तारे हैं
हम सफ़र में हैं अकेले एकदम

चाँद के हैं तलाश में तारे
और चंदा को ढूंढते हैं हम

चाँद को पा के थम गए तारे
पर मेरी फ़िक्र जाए कैसे थम

तारों के चहरे पर ख़ुशी लौटी
आँख नय्यर की रहेगी पुर नम

poet = फ़हीम नय्यर

शनिवार, 30 मई 2009


मोटू बच्चों से हमको बचाओ ....



Video-Games में उछलने कूदने वाले और Junk-Food खाने वाले यह आजकल के बच्चे ना स्कूल में दौड़ते हैं और ना ही घर में हिलते डुलते हैं. और अगर इन से कोई चीज़ लाने या बढ़ाने को कहिये तो टस से मस नहीं होते.
आजकल के बच्चे तो अपना स्कूल का bag ही बड़ी मुश्किल से उठाते हैं. अब वही bag जब कोई मोटा ताज़ा बच्चा जो के पहले ही अपना 10 , 20 किलो का चर्बी वाला गोश्त उठाये फिरता है, उठाये तो फिर उस बेचारे का क्या हाल होगा?

एक हम थे के अपने ज़माने में दौड़ कर स्कूल जाया करते थे और अक्सर भाग कर आया करते थे. फिर हर दूसरे दिन मुर्गा भी बनते थे. एक तो भागो दौड़ो और उस पर मुर्गा भी बनो.
जब कोई हमें सौदा लाने को कहता तो बड़े खुश होते के घर की क़ैद से छुटकारा मिला और "ऊपर की कमाई" भी अलग से मिलती. घर से बाज़ार और बाज़ार से घर बड़ा लंबा चक्कर काट कर आते. रास्ते में मोहल्ले के लड़कों से कोई खेल भी खेल लेते.
अब ऐसे हालात में मोटापे की क्या हिम्मत के हमारे करीब भी फटकता?

बचपन में खेलना कूदना उछालना दौड़ना हर बच्चे का हक़ है. लेकिन यह कमबख्त मोटापा उनका हक़ दबा देता है.
हम तो हमेशा दुआ करते हैं के किसी दुश्मन के बच्चे को भी मोटापा नसीब ना हो. दोस्त के बच्चों से तो हमारा ही हाल पतला होता है .... उस मोटू को खिलाने पिलाने गोद में उठाना जो पड़ता है.

अपने तमाम दोस्तों को हमारा मशूरा है के अपने बच्चों को मोटापे की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाने से रोकने की हर तरह कोशिश करें. वरना ....
उन से यह दोस्ती निभायी ना जायेगी
उन से यह बोझ उठाया ना जाएगा !!

शनिवार, 16 मई 2009


बातों से खुश्बू आए ...



* जब लोगों को पता चलता है के ज़िन्दगी क्या है तो यह आधी गुज़र चुकी होती है.

* दूसरों के चराग़ों से रौशनी ढूँढने वाले हमेशा अंधेरों में भटकते रहते हैं.

* लोग tea-bags की तरह होते हैं , जिन्हें जब तक खोलते हुए पानी में ना डाला जाए पता ही नही चलता के इनका असल रंग क्या है ?

* मौत टल नही सकती .... अगर मौत को मोहब्बत की ताक़त से टाला जा सकता तो कभी भी माँ अपनी गोद में तड़पते बच्चे को मरने नहीं देती.

* ज़िन्दगी की ठोकरें बहतरीन शिक्षा होती हैं.

* हम लोगों के मिज़ाज में यह बात शामिल है के अपनी छोटी सी नेकी और दूसरे की ज़रा सी बुराई हमेशा याद रखते हैं.

* अच्छे दोस्त की दोस्ती एक छत की तरह है जो आपको धूप और बारिश से बचाती है.

गुरुवार, 14 मई 2009


जिस रात के ख्वाब आये


काफ़ी दिन बाद ब्लॉग पर हाज़री दे रहा हूँ ... एक ऐसी खूबसूरत ग़ज़ल के साथ जिसके शाएर का नाम मुझे मालूम नहीं है.
अर्ज़ किया है ...........




जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई
शर्मा के झुकी नज़रें , होंटों पे वह बात आई

पैग़ाम बहारों का आखिर मेरे नाम आया
फूलों ने दुआएं दीं , तारों का सलाम आया
आप आये तो महफ़िल में नग़्मों की बरात आई
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई

यह महकी हुयी जुल्फें , यह बहकी हुयी सांसें
नींदों को चुरा लेंगी यह नींद भरी आँखें
तक़दीर मेरी जागी , जन्नत मेरे हाथ आई
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई

चहरे पे तबस्सुम ने एक नूर सा छलकाया
क्या काम चरागों का जब चाँद निकल आया
लो आज दुल्हन बन के पहलु में हयात आई
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई
शर्मा के झुकी नज़रें , होंटों पे वह बात आई

रविवार, 22 फ़रवरी 2009


मेरी चाहत की बहुत लम्बी सज़ा दो मुझ को


इस ग़ज़ल की video देखें : यहाँ

मेरी चाहत की बहुत लम्बी सज़ा दो मुझ को
कर्ब-ऐ-तन्हाई में जीने की सज़ा दो मुझ को

फ़न तुम्हारा तो किसी और से मंसूब हुआ
कोई मेरी ही ग़ज़ल आके सूना दो मुझ को

हाल बे-हाल है, तारीक है मुस्तक़बिल भी
बन पड़े तुम से तो माज़ी मेरा ला दो मुझ को

आख़री शमा हूँ मैं बज़्म-ऐ-वफ़ा की लोगो
चाहे जलने दो मुझे, चाहे बुझा दो मुझ को

ख़ुद को रख कर मैं कहीं भूल गई हूँ शाएद
तुम मेरी ज़ात से एक बार मिला दो मुझ को

poetess : निकहत इफ़्तेख़ार

कर्ब-ऐ-तन्हाई = तन्हाई का दर्द
फ़न = art / poetry
मंसूब = attached
तारीक = dark
मुस्तक़बिल = future
माज़ी = past
बज़्म-ऐ-वफ़ा = वफ़ा की महफ़िल

गुरुवार, 22 जनवरी 2009


तू ने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था


हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह
सिर्फ़ एक बार मुलाक़ात का मोक़ा दे दे

मेरी मंजिल है कहाँ , मेरा ठिकाना है कहाँ
सुबह तक तुझ से बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ
सोचने के लिए एक रात का मोक़ा दे दे

अपनी आंखों में छुपा रखे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पर सजा रखे हैं आंसू मैंने
मेरी आंखों को भी बरसात का मोक़ा दे दे

आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले
कपकपाते हुए होंटों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ऐ-ख़यालात का मोक़ा दे दे

भुलाना था तो यह इक़रार किया ही क्यूँ था
बे-वफ़ा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था
सिर्फ़ दो चार सवालात का मोक़ा दे दे


poet = क़ैसर-उल-जाफ़री

बुधवार, 21 जनवरी 2009


गरम एक बूसा मेरे मुं पर लगा दिया ...


तांगे वाला

ले के बीड़ी का एक लंबा कश
एक चाबुक लगा के घोड़े को
तांगे वाला मेरा कहने लगा
देख कर एक हसीं जोड़े को

बाबु जी एक दिन का ज़िक्र है यह
मैंने रेशम की चमकती लुंगी
आँख पर कुछ झुका के बाँधी थी
यह मेरी आँख छुप गई सी थी

उस सड़क पर इस आँख ने देखा
चुलबुली प्यारी एक हसीना को
"आजा कुड़ी, इधर ज़रा" कह कर
मार दी आँख उस हसीना को

अपने गोरे से हाथ का थप्पड़
मेरे मुं पर जमा दिया उस ने
यूँ लगा जैसे गरम एक बूसा
मेरे मुं पर लगा दिया उस ने

उस हसीं हाथ की हसीं खुशबू
अब भी आती है सूंघ लेता हूँ
दो घड़ी बंद कर के मैं आँखें
अपने तांगे में ऊंघ लेता हूँ

और क्या चाहिए था बाबू जी !!


poet = राजा महदी अली खान

सोमवार, 19 जनवरी 2009


तुझे इश्क़ हो ऐसा ख़ुदा करे


तुझे इश्क़ हो ऐसा ख़ुदा करे
कोई तुझ को उस से जुदा करे

तेरे होंट हँसना भूल जाएँ
तेरी आँख पुर-नम रहा करे

तू उसकी बातें किया करे
तू उसकी बातें सुना करे

उसे देख कर तू रुक पड़े
वह नज़र झुका के चला करे

तुझे हिज्र की वह घड़ी लगे
तू मिलन की हर पल दुआ करे

तेरे ख़्वाब बिखरें टूट कर
तू किरची किरची चुना करे

तू नगर नगर फिरा करे
तू गली गली सदा करे

तुझे इश्क़ हो तो यक़ीन हो
उसे तसबीहों पर पढ़ा करे

मैं कहूँ के इश्क़ ढोंग है
तू नहीं नहीं कहा करे

तुझे इश्क़ हो ऐसा ख़ुदा करे
तुझे इश्क़ हो ऐसा ख़ुदा करे

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आँख पुर-नम रहना = आँख में आंसू रहना
हिज्र = जुदाई
तसबीह पढ़ना = माला जपना
सदा करना = आवाज़ देना

शनिवार, 17 जनवरी 2009


हम से बढ़ कर कौन ?!


अमरीका से दो आदमी फ़्लाईट से भारत आ रहे थे. एक silicon-valley का आई टी प्रोग्रामर था और दूसरा शिकागो की किसी होटल में काम करने वाला हैदराबादी शाएर. फ़्लाईट में दोनों को सीट आस पास मिली.

आई टी प्रोग्रामर ने कहा: क्यूँ ना हम आपस में general-knowledge का कोई खेल खेलें?
हैदराबादी शाएर साहब ने इनकार कर दिया.
प्रोग्रामर ने दुबारा ज़ोर देकर कहा. फिर भी शाएर साहब ने इनकार कर दिया.
तीसरी बार प्रोग्रामर ने कहा:
ठीक है भाई साहब, आप हारें तो 1 डॉलर और मैं हारा तो 100 डॉलर दूंगा.
हैदराबादी शाएर साहब इस बार तैयार हो गए.

पहला सवाल प्रोग्रामर ने किया:
ज़मीन से चाँद तक का फ़ासला कितने किलो-मीटर का है?
शाएर साहब ने ख़ामोशी से 1 डॉलर प्रोग्रामर के हाथ में दे दिया.

अब शाएर साहब ने सवाल किया :
वह कौनसा जानवर है जो पहाड़ पर तीन पैरों से चढ़ता है मगर पहाड़ से उतरता चार पैरों से है?
प्रोग्रामर साहब ने अपना लैपटॉप खोला और बड़ी देर तक सर खपाते रहे. दो चार ईमेल किए फिर कुछ दोस्तों को SMS भी किया. मगर थक हार कर उन्हें 100 डॉलर शाएर साहब को देना ही पड़े. उसके बाद खेलने की ज़्यादा हिम्मत नही हुयी. ख़ामोश ही बैठे रहे.

जहाज़ जब मुंबई पर लैंड होने लगा तो प्रोग्रामर ने शाएर साहब से पुछा :
आप अपने सवाल का जवाब तो बता दीजिये.
इस पर शाएर साहब ने 1 डॉलर का नोट उनके हाथों में थमाते हुए कहा :
मुझे नही मालूम !!

मंगलवार, 6 जनवरी 2009


यह बच्चे सब के बच्चे हैं



मासूम से प्यारी जानों पर
यूँ बम जब तुम बरसाते हो
क्या हाल हुआ है आख़िर को
एक बार सही पर तुम देखो
जो घायल हुआ है छर्रों से
जो मलबे तले है दबा हुआ
वह जूते पहने सोया था
वह शाएद किसी की गुडया है
वह देखो हाथ जो दिखता है
एक feeder हाथ में पकड़ा है

ऐसे ही कितने बच्चे हैं
मासूम फरिश्तों जैसे हैं
क्या लेना इनको मज़हब से
क्या काम है इनका नफ़रत से
मासूम हैं यह तो सच्चे हैं
यह बच्चे सब के बच्चे हैं !!

शुक्रवार, 2 जनवरी 2009


नया साल खुशियों का पैग़ाम लाए



नए साल पर आप सब को शुभ कामनाएं !!
नए साल पर हमारी दुआ .....

नया साल खुशियों का पैग़ाम लाए
खुशी वह जो आए तो आकर ना जाए

खुशी यह हर एक शख़्स को रास आए
मोहब्बत के नग़्मे सभी को सुनाए

रहे जज़बा-ऐ-मोहब्बत हमेशा सलामत
रहें साथ मिल जुल के अपने पराए

नही खिदमत-ऐ-इंसान से कुछ भी बहतर
जहाँ जो भी है फ़र्ज़ अपना निभाए

मोहब्बत की शमें रौशन हों हर तरफ़
दिया अमन और सुलह का जगमगाए