सोमवार, 15 सितंबर 2008


आप की याद आती रही ...


मक़्दूम मोहिउद्दीन की एक मशहूर ग़ज़ल पेश-ऐ-खिदमत है

आप की याद आती रही रात भर
चश्म-ऐ-नम मुस्कुराती रही रात भर

रात भर दर्द की शमा जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर

बांसुरी की सुरेली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रात भर

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर


चश्म-ऐ-नम = आंसू भरी आँख

शनिवार, 6 सितंबर 2008


एक ज़रदारी को देखा तो ऐसा लगा


आज की ताज़ा ख़बर यह है के Asif Zardari पाकिस्तान के सद्र मुन्तख़्ब हो गए हैं
सुनने में आया है के पाकिस्तानियों की एक बड़ी तादाद ज़रदारी के ख़िलाफ़ है
एक पाकिस्तानी साहेब ने अपने उर्दू ब्लॉग पर हिन्दी फ़िल्म "1942 A Love Story" के एक मशहूर गाने की parody कुछ यूँ लिख रखी है
आप भी मज़ा लीजिये ....

एक ज़रदारी को देखा तो ऐसा लगा
जैसे खाना ख़राब
जैसे टोटल (total) अज़ाब
जैसे आदि फ़कीर
जैसे मुर्दा ज़मीर
जैसे नासूर हो कोई रिसता हुआ ...

एक ज़रदारी को देखा तो ऐसा लगा
जैसे बिजली की तार
जैसे ख़ंजर की धार
जैसे दोज़ख़ की आग
जैसे ज़हरीला नाग
जैसे कुत्ते पे हो कव्वा बैठा हुआ

एक ज़रदारी को देखा तो ऐसा लगा
जैसे गर्मी की धूप
जैसे शैतान का रूप
जैसे बे-वर्दी डकैत
जैसे मौलवी का पेट
जैसे डाकू कोई गन (gun) दिखाता हुआ
एक ज़रदारी को देखा तो ऐसा लगा

गुरुवार, 4 सितंबर 2008


कुछ दिन तो बसो मेरी आंखों में


कुछ दिन तो बसो मेरी आंखों में
फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

एक आइना था सो टूट गया
अब ख़ुद से अगर शरमाओ तो क्या

तुम आस बंधाने वाले थे
अब तुम भी हमें ठुकराओ तो क्या

दुन्या भी वही और तुम भी वही
फिर तुम से आस लगाओ तो क्या

मैं तनहा था मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या ना आओ तो क्या

जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या गह्नाओ तो क्या

एक वहम है यह दुन्या इस में
कुछ खोओ तो क्या और पाओ तो क्या


- ऊबैदुल्लाह अलीम

बुधवार, 3 सितंबर 2008


कुछ फूल मैंने चुने ...


* मोहब्बत ऐसा दर्या है के बारिश रूठ भी जाए तो पानी कम नहीं होता

* कड़वी बात पत्थर की तरह होती है जो हर चीज़ को ज़ख्मी या ख़राब कर देती है , जबके मीठी बात उस चश्मे की तरह होती है जिस की तरफ़ इंसान तो इंसान जानवर भी दौड़े चले जाते हैं

* ख्वाहिश को दिल में जगह देना ज़ख्म को दिल में जगह देने के बराबर है क्यूंकि अगर ख्वाहिश पूरी हो जाए तो दिल फूल बन जाता है और अगर ख्वाहिश पूरी ना हो तो ज़ख्म बन जाता है

* इस दुन्या में दो लोग ही आप को अच्छी तरह से जानते हैं , एक वह जो आप से मोहब्बत करते हैं और दूसरे वह जो सब से ज़यादा आप से नफ़रत करते हैं

मंगलवार, 2 सितंबर 2008


मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे


इस से पहले के यह दुन्या मुझे रुसवा कर दे
तू मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे

यह जो हालत है मेरी मैं ने बनाई है मगर
जैसा तू चाहता है अब मुझे वैसा कर दे

मेरे हर फ़ैस्ले में तेरी रज़ा शामिल हो
जो तेरा हुक्म हो वह मेरा इरादा कर दे

मुझ को वह इल्म सिखा दे जिस से उजाला फैले
मुझ को वह इस्म पढ़ा दे जो मुझे जिंदा कर दे

ज़ाये होने से बचा ले मेरे महबूब मुझे
यह ना हो वक़्त मुझे खेल तमाशा कर दे

मैं मुसाफ़िर हूँ सौ रस्ते मुझे रास आए हैं
मेरी मंजिल को मेरे वास्ते रस्ता कर दे

इस से पहले के यह दुन्या मुझे रुसवा कर दे
तू मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे

- अल्लामा इक़बाल

ज़ाये = waste

सोमवार, 1 सितंबर 2008


रमज़ान करीम मुबारक


अस्सलाम-ओ-अलैकुम।
तमाम मुसलमान भाई बहनों को रमज़ान करीम मुबारक हो।
अल्लाह से दुआ है के हम तमाम को इस माह-ऐ-मुबारक में गुनाहों से बचाए और तमाम इबादतों को बजा लाने की तौफ़ीक़ दे , आमीन।