मंगलवार, 2 सितंबर 2008


मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे


इस से पहले के यह दुन्या मुझे रुसवा कर दे
तू मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे

यह जो हालत है मेरी मैं ने बनाई है मगर
जैसा तू चाहता है अब मुझे वैसा कर दे

मेरे हर फ़ैस्ले में तेरी रज़ा शामिल हो
जो तेरा हुक्म हो वह मेरा इरादा कर दे

मुझ को वह इल्म सिखा दे जिस से उजाला फैले
मुझ को वह इस्म पढ़ा दे जो मुझे जिंदा कर दे

ज़ाये होने से बचा ले मेरे महबूब मुझे
यह ना हो वक़्त मुझे खेल तमाशा कर दे

मैं मुसाफ़िर हूँ सौ रस्ते मुझे रास आए हैं
मेरी मंजिल को मेरे वास्ते रस्ता कर दे

इस से पहले के यह दुन्या मुझे रुसवा कर दे
तू मेरे जिस्म मेरी रूह को अच्छा कर दे

- अल्लामा इक़बाल

ज़ाये = waste

1 टिप्पणी:

अमिताभ मीत ने कहा…

मैं मुसाफ़िर हूँ सौ रस्ते मुझे रास आए हैं
मेरी मंजिल को मेरे वास्ते रस्ता कर दे