मंगलवार, 30 दिसंबर 2008


ग़ज़ा पर इसराइल के हमले : हमारा अह्तेजाज !!



ग़ज़ा पर इसराइल के वहशियाना हमले
हमारा अह्तेजाज
हर इंसानियत-पसंद का अह्तेजाज !!

Where is Human Rights?
Is this what you call : Road to Peace??
UNO = United Nonsense !!

मंगलवार, 23 दिसंबर 2008


एक किताब हो मोहब्बत की ...



हमारे एक ब्लॉगर साथी ने पूछा है के:
तुमने "पागल लड़की" को मशूरा तो दे दिया, मगर उससे यह भी पूछा के उसने ख्वाब देखा या कोई दुआ मांगी थी?
चलिए .... उसी "पागल आंखों वाली लड़की" से ही पूछ लेते हैं ...
*********


एक अजीब सी ख़ाहश लिख बैठी हूँ

जी में है
के
एक किताब हो मोहब्बत की
जिसका नाम तमन्ना हो
बाब हो उसके उतने ही
जितनी मेरी उम्र हो

जिसके हर सफ्हे पे रखे
ख़ाहशों के फूल हो
ख़ाहशें भी ऐसी
जिस में एक तमसील हो

उस तमसील में सर ता पा
मेरी अपनी ही तकमील हो

मेरे साहर
मोहब्बत की उस किताब में
ऐसा कुछ तुम भी लिखो
जो किसी ने अबतक लिखा ना हो

सुनो
मेरी जान !
मैं तो एक अजीब सी
खाहिश लिख बैठी हूँ
अपने रब से तुम्हें
सिर्फ़
एक दिन के लिए मांग बैठी हूँ

मेरे साहर
मेरा यक़ीन कहता है
तुम्हारे साथ एक दिन में
कई जन्मों का सफ़र रहेगा !!

बाब = chapter
तमसील = मिसाल (example)
सर ता पा = सर से पैर तक
तकमील = completeness
साहर = जादूगर


poetess = निगहत नसीम

सोमवार, 22 दिसंबर 2008


पागल आंखों वाली लड़की



पागल आंखों वाली लड़की
इतने महेंगे ख़्वाब ना देखो
थक जाओगी

कांच से नाज़ुक ख़्वाब तुम्हारे
टूट गए तो पछताओगी
तुम क्या जानो ...!

ख़्वाब... सफ़र की धुप के तीशे
ख़्वाब... अधोरी रात का दोज़ख़
ख़्वाब... ख़यालों का पछतावा

ख़्वाबों का हासिल = तन्हाई
महेंगे ख़्वाब खरीदना हों तो
आँखें बेचना पड़ती हैं
रिश्ते भूलना पड़ते हैं

अंदेशों की रेत ना फानको
ख़्वाबों की ओट सराब ना देखो
प्यास ना देखो
इतने महेंगे ख़्वाब ना देखो
थक जाओगी
.....


तीशा = कुल्हाड़ी
दोज़ख़ = नरक
अंदेशा = चिंता


poet = मोहसिन नक़वी

रविवार, 21 दिसंबर 2008


मोहब्बत बड़े नसीब की बात है...


मोहब्बत बड़ा खूबसूरत जज़्बा है, पता नही चलता कब और कैसे दिल में उभर आता है ... जैसे बरसात की अँधेरी रात में जुगनू झिलमिला उठें ... या जैसे मन्दिर में कोई चुपके से दिया जला दे.

मोहब्बत चाहे किसी को भी क्यूँ ना हो जाए ... दिल को इतना नर्म कर देती है के आंसू का बीज भी हर वक़्त फूल देने को तैयार हो जाता है.

मोहब्बत कोशिश या महनत से हासिल नही होती, यह तो नसीब है बलके बड़े ही नसीब की बात है. ज़मीन के सफ़र में अगर कोई चीज़ आसमानी है तो वह मोहब्बत ही है.

शनिवार, 20 दिसंबर 2008


अली बाबा की मजबूरी


फ़्रिज
रंगीन टीवी
ऑटोमेटिक वाशिंग मशीन
डीवीडी और लैपटॉप भी
मारुती ना सही , नानो ही सही
नंगे भूके रिश्तेदारों से परे
पोश कालोनी में एक अच्छा सा बंगला
चमचमाती साडियां बीवी की ख़ातिर
और कुछ गहने भी
बच्चों के लिए
दम बखुद कर देने वाले
जापानी खिलोने
गल्फ (gulf) की एक और ट्रिप
बहुत ज़रूरी हो गई है

बेचारा बद-बख्त अली बाबा
जैसे तैसे
हिर्स-व-हवस के ग़ार में दाखिल तो हो गया है
लेकिन बाहर आए कैसे
"खुल जा सिम सिम"
कहना भूल गया है !!


poet = जब्बार जमील

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008


रोया हूँ यूँ के ...


इस दर्जे अहतियात से लिखा है ख़त उसे
रोया हूँ यूँ के हर्फ़ भी गीले नही हुऐ

दर्जे = श्रेणी
अहतियात = सावधानी
हर्फ़ = अक्षर


मंगलवार, 16 दिसंबर 2008


हम ने तो कोई बात निकाली नही ग़म की


सीने में जलन आंखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
इस शेहर में हर शख़्स परेशान सा क्यूँ है

दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूंडे
पत्थर की तरह बे-हिस-व-बेजान सा क्यूँ है

तन्हाई की यह कौनसी मंज़िल है रफ़ीक़ो
ता हददे-नज़र एक बयाबान सा क्यूँ है

हम ने तो कोई बात निकाली नही ग़म की
वह ज़ूद-ऐ-पशीमान , पशीमान सा क्यूँ है

क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आइना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है

poet = प्रोफ़ेसर शहरयार


रफ़ीक़ो = दोस्तो
ता हददे-नज़र = नज़र की last-limit तक
बयाबान = जंगल
ज़ूद-ऐ-पशीमान = शर्मिंदगी का मारा

सोमवार, 8 दिसंबर 2008


ईद मुबारक - eid mubarak


सऊदी अरब में आज बक्र-ईद मनाई गई. भारत में ईद कल 9-दिसम्बर को होगी.
इस ब्लॉग के पढने वाले तमाम साथियों को ईद-मुबारक क़ुबूल हो.

हज के मोक़े पर कल मैदान-ऐ-अरफ़ात में मस्जिद-ऐ-नम्रा के इमाम साहब ने खुत्बा देते हुए कहा था :
इस्लाम इंसानी समाज को अमन का पैग़ाम देता है. ज़मीन पर इंसान का खून बहाना अल्लाह के नज़दीक सक़्त ना-पसंदीदा काम है. कुछ ताक़तें मुसलमान नौजवानों को दीन से भटका रही हैं. वह इन ताक़तों से ख़बरदार रहें. इस्लाम ने समाज में फ़साद फैलाने वालों को सक़्त सज़ाएं दे रखी हैं.
मुसलमानो ! अल्लाह की ना-फ़रमानी को तर्क कर के अल्लाह की ग़ुलामि को क़बूल कर लो.

अल्लाह से दुआ है के इमाम साहब का यह मशूरा वह तमाम मुसलमान नौजवान क़बूल कर लें जो असल इस्लाम से भटक कर आतंकवादी के ग़लत रास्ते पर चल पड़े हैं.
आमीन !!

रविवार, 7 दिसंबर 2008


9th-ज़िलहज : अरफ़ा का दिन


ज़िलहज , इस्लामी महीनों का 12th और आख़री महिना है. हज इसी महीने की 8 से 12 तारीख़, जुमला 5 दिनों में अंजाम पाता है. हज का दूसरा दिन यानि 9-ज़िलहज "अरफ़ात" का दिन कहलाता है. (इस साल 9-ज़िलहज, 7-Dec.-2008 को आया है.)
तमाम हाजी इस दिन अरफ़ात के मैदान में जमा होते हैं. [अरफ़ात का मैदान , मक्का मुकर्रमा से 14.4 KM (9-miles) दूर है.]

अरफ़ात के मैदान में चारों तरफ़ निशाँ लगा दिए गए हैं. क्यूँ के जो कोई हाजी 9-ज़िलहज को इस मैदान के अंदर दाख़िल ना हो पाये उसका हज नही होता. मैदान-ऐ-अरफ़ात दुआओं के क़ुबूल होने का मुक़ाम है. इसलिए तमाम हाजी इस मैदान में ज़्यादा से ज़्यादा दुआएं मांगते हैं.
9-ज़िलहज की शाम सूरज ग़ुरूब होने के बाद हाजी इस मैदान से निकलना शुरू हो जाते हैं.

जो मुसलमान हज पर नही होते वह इस दिन रोज़ा रखते हैं. क्युंके हमारे नबी करीम (सल्लल लाहू अलैहि वसल्लम) का फ़रमान है के : अरफ़ा के दिन का रोज़ा पिछले और अगले, दो साल के गुनाहों को मिटा देता है (इन-शा-अल्लाह).