शुक्रवार, 25 जुलाई 2008


तेरी तस्वीर पे लब रख दिये ...


परवीन शाकिर के क़ल्म से .......

जाने कब तक तेरी तस्वीर निगाहों में रही
हो गई रात तेरे अक्स को तकते तकते
मैंने फिर तेरे तसव्वुर के किसी लम्हे में
तेरी तस्वीर पे लब रख दिये अहिस्ता से

अक्स = image , photograph
तकते तकते = देखते देखते

तसव्वुर = imagination
लब = lips

शुक्रवार, 18 जुलाई 2008


क्या यही होती है शाम-ऐ-इन्तेज़ार


कैफ़ भोपाली की एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश-ऐ-खिदमत है।।

हाऐ लोगौं की क्रम फ़र्माईयाँ
तोहमतें , बदनामियाँ , रुस्वाईयाँ

जिंदगी शाएद इसी का नाम है
दूरियां , मजबूरियाँ , तन्हाइयाँ

क्या ज़माने में यूँही कटती है रात
करवटें , बे-ताबियाँ , अंगडा़इयाँ

क्या यही होती है शाम-ऐ-इन्तेज़ार
आहटें , घबराहटें , परछाइयाँ

मेरे दिल की धड़कनों में ढ़ल गयीं
चूड़ियाँ , मोसीक़ियाँ , शेह-नाइ-याँ

एक पैकर में सिमट कर रह गयीं
खूबियाँ , ज़ेबाईयाँ , रेए-नाईयाँ

उनसे मिलकर और भी कुछ बढ़ गयीं
उलझनें , फिक्रें , क़यास-आराईयाँ

चंद लफ़्जौं के सिवा कुछ भी नहीं
नेकियाँ , कुर्बानियां , सच्चाईयाँ

कैफ़ , पैदा कर समुन्दर की तरह
वुस-अतें , खा़मूशियाँ , गहराईयाँ

क्रम फ़र्माईयाँ = महेरबानियाँ (plural form)
तोहमत = इल्ज़ाम लगाना
रुस्वाई = बे-इज़्ज़ती
मोसीक़ियाँ = music (plural form)
पैकर = रूप, सूरत
खूबियाँ = अच्छाईयाँ
ज़ेबाईयाँ = elegancy (plural form)
रेए-नाईयाँ = ख़ूबसूरती (plural form)
क़यास-आराईयाँ = ख़याली बातें (plural form)
वुस-अतें = बड़ाई , large (plural form)

गुरुवार, 17 जुलाई 2008


चाँद का अब्बा ..... !


चाँद का अब्बा

चाँद रात आए तो सब देखें हिलाल-ऐ-ईद
एक हमारा ही नसीबाँ , हड्डियां तुड़वा गया
छत पर थे हम चाँद के नज़ारे में खोये खोये
बस अचानक चाँद का अब्बा वहां आ गया

marriage-certificate expiration!

एक दिन बीवी ने शौहर से कहा क्या बात है
इस क़द्र गुम सुम बुझे पहले कभी देखा नहीं
अक़्द-नामा उस के आगे कर के शौहर ने कहा
कब यह होगा एक्स्पाएर (expire) यह कहीं लिखा नहीं

"चंदा"

कल एक चाँद सी लड़की को देखा तो हो गया दिल बे-क़ाबू
कह दिया सामने जा के प्यार से मैं ने उसको "चंदा"
फ़ौरन दस रुपे नोट थमा के आगे से वह बोली
यह तो बतला दो किस मस्जिद का मांग रहे हो चंदा ?


हिलाल-ऐ-ईद = ईद का चाँद
अक़्द-नामा = marriage-certificate

बुधवार, 16 जुलाई 2008


बीवियों की दहशत


कॉलेज के ज़माने में एक जोक हम साथियौं के बीच बड़ा मशहूर था, शाएद आप को भी मालूम हो.
एक मियाँ अपनी बीवी से बोले :
अंग्रेज़ी के 3 W's में कभी यकीं नहीं करना चाहिए
Wealth (दौलत), Weather (मौसम) और Woman (औरत) .....
अभी मियाँ ने इतना ही कहा था के आख़री लफ्ज़ सुनकर बीवी ग़ुस्से से उनकी तरफ़ बढ़ी, मियाँ ने जल्दी से गाल पर हाथ रख कर कहा : आगे भी तो सुनो ....
अगर आप अमेरिका में हूँ तो !!

पिछले दिनों पाकिस्तान के एक बहुत मशहूर लेखक "मुस्तंसर हुसैन तारढ़" के एक मज़मून में एक मज़े का पैराग्राफ पढने को मिला, ज़रा आप भी पढ़ें .....

नाश्ते की मेज़ पर अख़बार खोला तो अजीब हौलनाक खबरें पढने को मिलीं, मस्लन बीवियों से मार खाने वाले. पाकिस्तान में हर साल ढाई लाख मर्द बीवियों के तमांचे खाते हैं और पाकिस्तानी बीवियां शौहरों पर खोलता हुआ चाऐ का पानी फ़ेंक देती हैं, नोकदार जूतीओं से ज़ख्मी होने वाले शौहरों को कई रोज़ बिस्तर-ऐ-अलालत पर रहना पड़ता है. बीवियों के नाक़ाबिल-ऐ-बर्दाश्त मज़ालिम को पढ़ कर मेरे तो रोंगटे खड़े हो गऐ, गला खुश्क हो गया, बदन लरज़ने लगा.
फिर मैं उसी अख़बार को दुबारा पढने लगा ..... मालूम हुआ कि यह ज़ुल्म कि दास्तानें तो अमेरिका कि हैं .... और मैं ज़ाती तजुर्बात कि दहशत कि वजह से अमेरिका कि बजाये पाकिस्तान और पाकिस्तानी बीवियां पढता गया !


जोक = joke
हौलनाक = ख़तरनाक
बिस्तर-ऐ-अलालत = मरीज़ का बिस्तर
मज़ालिम = बहुत ज़ुल्म

मंगलवार, 15 जुलाई 2008


जिसे चाहा नहीं था...


एतेमाद सिद्दिक़ि (Etemaad Siddiqui, اعتماد صدیقی) हैदराबाद के एक बहुत अच्छे शाएर थे। सऊदी अर्ब में अपने जॉब के 20 साल गुज़ारने के बाद वह हैदराबाद लौट गये थे। अभी कुछ साल पहले हैदराबाद में उनका इन्तेक़ाल हो गया। इन्तेक़ाल से साल भर पहले उनकी शाएरी की पहली किताब रिलीज़ (release) हुयी थी , जिसका नाम है : रेत का दरया
रेत का दरया से एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश-ऐ-खिदमत है।।


***

जिसे चाहा नहीं था वह मुक़द्दर बन गया अपना
कहाँ बुन्याद रखी थी कहाँ घर बन गया अपना

लिपट कर तुन्द मौजौं से बड़ी आसूदगी पायी
ज़रा साहिल से क्या निकले समुन्दर बन गया अपना

कोई मंज़र हमारी आँख को अब नम नहीं करता
होए क्या हादसे जो दिल ही पत्थर बन गया अपना

हिजूम-ऐ-शेहर में देखा तो हम ही हम नज़र आए
बनाया नक़्श जब उसका तो पैकर बन गया अपना

चले थे एतेमाद आसाऐषों की आर्ज़ु लेकर
ना जाने कौन्सा सेहरा मुक़द्दर बन गया अपना


तुन्द = severe , fierce
मौजौं = waves
आसूदगी = ease, conveniency
हिजूम-ऐ-शेहर = city public, a crowd in a city
नक़्श = arabesque
पैकर = रूप, सूरत
आसाऐषों = easiness, convenience
सेहरा = desert

रविवार, 13 जुलाई 2008


खुश आमदीद - स्वागतम - वेल्कम


उर्दू है जिस का नाम हमी जानते हैं दाग़
सारे जहाँ में धूम हमारी जुबां की है

हम बुनयादी तौर पर उर्दू दाँ हैं और उर्दू को उसके अस्ल रस्म-उल-ख़त (लिपि) में लिखने के क़ाएल हैं। उर्दू की अस्ल लिपि फ़ारसी है जो कि दाएं [right] से बाएँ [left] तरफ़ लिखी जाती है। हम अपना अस्ल उर्दू ब्लॉग यहाँ लिखा करते हैं।

उर्दू शेर-ओ-अदब से हमारी गहरी दिलचस्पी को देखते हुये हमारे कुछ दोस्तों ने राए दी है कि देवनागरी लिपि में भी हम अपना उर्दू ब्लॉग शुरू करें ताकि देवनागरी लिपि से वाक़िफ़ शाएकीं-ऐ-शेर-ओ-अदब का एक वसी हल्का [vast group], माज़ि [past] और हाल [present] के कलाम-ऐ-सुख़न से लुत्फ़ अन्दोज़ हो सकें।
यह ब्लॉग हमारे मुख्लिस दोस्तों कि उसी राए का नतीजा है ॥

उम्मीद कि उर्दू शेर-ओ-अदब के दिल्दादह इस ब्लॉग को पज़ीराई बख्शें गे। शुक्रिया ॥

नही खेल अए दाग़ यारों से कह दो
के आती है उर्दू जुबां आते आते ।
( दाग़ )

शहद-ओ-शक्र से शीरीं उर्दू जुबां हमारी
होती है जिसकी बोली मीठी जुबां हमारी
( हाली )

गैसुये उर्दू अभी मिन्नत पजीर-ऐ-शाना है
शमा यह सौदाई दिल सोज़ी-ऐ-परवाना है
( इकबाल )