रेत का दरया से एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल पेश-ऐ-खिदमत है।।
***
जिसे चाहा नहीं था वह मुक़द्दर बन गया अपना
कहाँ बुन्याद रखी थी कहाँ घर बन गया अपना
लिपट कर तुन्द मौजौं से बड़ी आसूदगी पायी
ज़रा साहिल से क्या निकले समुन्दर बन गया अपना
कोई मंज़र हमारी आँख को अब नम नहीं करता
होए क्या हादसे जो दिल ही पत्थर बन गया अपना
हिजूम-ऐ-शेहर में देखा तो हम ही हम नज़र आए
बनाया नक़्श जब उसका तो पैकर बन गया अपना
चले थे एतेमाद आसाऐषों की आर्ज़ु लेकर
ना जाने कौन्सा सेहरा मुक़द्दर बन गया अपना
तुन्द = severe , fierce
मौजौं = waves
आसूदगी = ease, conveniency
हिजूम-ऐ-शेहर = city public, a crowd in a city
नक़्श = arabesque
पैकर = रूप, सूरत
आसाऐषों = easiness, convenience
सेहरा = desert
9 टिप्पणियां:
बेहतरीन ग़ज़ल!
बहुत ही बेहतरीन. इसकी खासियत व् सुन्दरता के लिए उर्दू के अल्फाजों का अर्थ भी आपने दिया है, प्रसंसनीय. अगर हिन्दी में भी अर्थ देन तो और भी अच्छा हो.
---
इधर भी घूम जाएँ;
उल्टा तीर
विनय प्रजापति 'नज़र'...
बहुत शुक्रिया विनय
Amit K. Sagar...
मशूरे का शुक्रिया अमित, आएंदा से ख्याल रखूँगा. और आप के ब्लॉग पर भी आता रहूँगा ज़रूर.
बेहतरीन है, इस दर पर उर्दु लफ़्ज़ों का तरज़ुमा चार चाँद लगा रहा !
मुबारिक हो, यह नया आशियाना ।
ग़ौर फ़रमायें, वर्ड वेरीफ़िकेशन की मुमानियत है यहाँ,
क़द्रदानों के नुक्तों की आमद को आसान करें, शुक्रिया !
डा० अमर कुमार...
डॉक्टर साहेब, आप क़ाक्सार के दर पर आए, बड़ी ख़ुशी हुयी, बहुत शुक्रिया और आप की मुबारकबाद का भी बहुत बहुत शुक्रिया. आप के मशोरे पर वर्ड वेरीफ़िकेशन मैंने निकाल दी है. आते रहिये गा कि आप जैसे क़द्रदानों से हौसला बढ़ता है.
कोई मंज़र हमारी आँख को अब नम नहीं करता
होए क्या हादसे जो दिल ही पत्थर बन गया अपना
माशा अल्लाह.. क्या लिख़ते हैं ज़नाब
बहुत बेहतरीन गज़ल है. पढ़ने का मौका दिया, शुक्रिया.
ख़लिश
www.writing.com/authors/mcgupta44
http://mcgupta44.blogspot.com/
Dr. M C Gupta...
डा० गुप्ता, ब्लॉग पर तशरीफ़ लाने और ग़ज़ल को पसंद करने का बहुत शुक्रिया.
it was very nice
एक टिप्पणी भेजें