शनिवार, 30 अगस्त 2008


दो आर्ज़ू में कट गए , दो इंतज़ार में


उर्दू के मशहूर शाऐर बहादुर शाह ज़फर का एक बहुत मशहूर शेर है
उम्र-ऐ-दराज़ मांग के लाये थे चार दिन
दो आर्ज़ू में कट गए , दो इंतज़ार में


मिज़ाहिया शाऐर पापुलर मेरठी ने इसको मिज़ाहिया अंदाज़ में कुछ यूँ लिखा है :

महबूब वादा कर के भी आया न दोस्तो
क्या क्या किया ना हम ने यहाँ उसके प्यार में
मुर्गे चुरा के लाये थे जो चार पापुलर
दो आर्ज़ू में कट गए , दो इंतज़ार में


उम्र-ऐ-दराज़ = long life
पापुलर मेरठी = Popular meerathi (an URDU poet)

मंगलवार, 26 अगस्त 2008


उर्दू के मशहूर शाएर फ़राज़ नहीं रहे


जीवन ज़हर भरा सागर , कब तक अमृत घोलेंगे
नींद तो क्या आएगी फ़राज़ , मौत आए तो सो लेंगे

उर्दू के मशहूर पाकिस्तानी शाएर अहमद फ़राज़ कल सोमवार 25-8-2008 की रात इस्लामाबाद में वफ़ात पा गऐ। अल्लाह उन को जन्नत नसीब करे। आमीन।

उर्दू शाएरी का एक बेहतरीन दौर ख़तम हो गया। अब फ़राज़ जी हम को उसी तरह किताबों में मिलें गे जैसा ख़ुद उन्हों ने कहा था :
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

फ़राज़ साहेब की यह पूरी ग़ज़ल उनको ख़राज-ऐ-अक़ीदत के तौर पर पेश है .........


अब के हम बिछडे तो शाएद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें


ढूंढ उजडे हुए लोगौं में वफ़ा के मोती
यह ख़ज़ाने तुझे मुमकिन हैं ख़राबों में मिलें

ग़म-ऐ-दुन्या भी ग़म-ऐ-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

तू ख़ुदा है ना मेरा इश्क फरिश्तों जैसा
दोनों इंसान हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें

आज हम दार पे खींचे गऐ जिन बातों पर
क्या अजब कल वह ज़माने को निसाबों में मिलें

अब ना वह मैं हूँ ना तू है ना वह माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्ना के , सराबों में मिलें

शनिवार, 23 अगस्त 2008


दिल ... दिल ... दिल ...


**
ख़ुदा करे मेरी तरह तेरा किसी पे आए दिल
तू भी जिगर को थाम के कहता फिरे के हाऐ दिल
रोंदो ना मेरी क़बर को इस में दबी हैं हसरतें
रखना क़दम संभाल के देखो कुचल ना जाए दिल

*
यह कैसे ख्वाब से जागी हैं आँखें
किसी मंज़र पे दिल जमता नही है

*
यह तो मुमकिन ही नही दिल से भुला दूँ तुझ को
जान भी जिस्म में आती है तेरे नाम के साथ

*
गर बिछड़ना पड़ा हम से तो जियोगे कैसे
दिल की गेह्रायियौं से इतना हमें चाहा ना करो

**
दिल की चोखट पे जो एक दीप जला रखा है
तेरे लौट आने का इमकान सजा रखा है
साँस तक भी नही लेते हैं तुझे सोचते वक़्त
हम ने इस काम को भी कल पे उठा रखा है

रोंदना = to crush
इमकान = imaginable

शनिवार, 16 अगस्त 2008


मूंछें हो तो नथू लाल जैसी .....


बरसों पहले अमिताभ बच्चन की फ़िल्म "शराबी" जो आई थी उसका एक मशहूर डैलोग था
मूंछें हो तो नथू लाल जैसी हों वरना नो हों

अब मूंछों पर कुछ ज़रूरी बातें पढ़िये :

- मूंछें आप के बुरे वक़्त की साथी हैं , आप किसी की गर्दन नही मोड़ सकते लेकिन अपनी मूंछें ज़रूर मोड़ सकते हैं

- अगर आपको बाग़्बानी का शौक़ हो तो मूंछों की परवरिश और उन्हें काट छांट कर अपना शौक़ पूरा करें

- मूंछें तराशने वाला जेब तराश की तरह होता है ... ज़रा सी भी ग़लती हो तो दोनों किसी को मुः दिखाने के क़ाबिल नही रहते

- मूंछें तराशना एक मुश्किल फ़न है , आदमी सारी ज़िन्दगी यह काम करने के बाद भी इसमे माहिर नही होता अलबत्ता वह ठंडे मिज़ाज का ज़रूर बन जाता है क्युंके मूंछें तराशना जल्दबाज़ और तेज़ मिज़ाज आदमी के बस का रोग नही है

शुक्रवार, 15 अगस्त 2008


१५-अगस्त ... नेमत-ऐ-आज़ादी ... मेरी दुआ


१५-अगस्त
आज़ादी भी कितनी बड़ी नेमत है !

आज बाहर की दुन्या तो बड़ी हसीन है , खुशगवार है , रोमानी है , रंग बिरंगी है , हवाओं में ताज़गी सी है ...
मगर ऍ काश ...
हमारे अन्दर का मौसम भी दिलरुबा होता , उतना ही महकता होता ...
आज मिटटी का रंग भी बड़ा लाल लाल सा नज़र आता है , रूह कहती है के यह मिटटी उन जियालों के खून की याद में रो रही है जिन्हों ने इस प्यारे वतन को आजाद कराया , अपने क़ीमती खून की क़ुर्बानियाँ दीं , शाएद सोचा होगा के उनके मरने के बाद ही सही मगर एक नई सुबह तो तुलू होगी !

आह ... के वह सुबह तुलू हुयी भी तो कितने मुख्तसर वक़्फ़े के लिए?
प्यारे वतन की धरती का रंग आज भी उतना ही लाल है।
मज़हब , सियासत , जुबां , इलाका , ज़ात पात और फ़िरक़े ... इन सब मोतियौं को जमा कर के खूबसूरत जगमगाती माला बनायी थी मोमारान-ऐ-वतन ने। मालूम नहीं इतने सालों में किस की नज़र लग गई ?

तस्बीह की डोर टूट गई है , दाने इधर उधर बिखर गए हैं ...
रोने की आवाजें , दहशत ज़दा आवाजें , धमाकों की आवाजें , चीखना चिल्लाना , तड़पना फड़कना , फ़िज़ा में बारूद की बू ... परिंदे उदास हैं , उनकी चोंच से शाक़-ऐ-जैतून छीन ली गई है ।

फिर भी ...
हां फिर भी ... हर साल १५-अगस्त की सुबह माहौल बदल जाता है , हसीं-वो-खुशगवार हो जाता है , चारों तरफ़ जैसे होली के दमकते रंग बिखर जाते हैं , आज़ादी के दिल-आवीज़ नग़्मों की लहरें सुनाई देती हैं , फिजायें झूम झूम उठती हैं ...

ऍ अल्लाह ! ऍ मेरे रब !
काश के यह दिन , यह खूबसूरत दिन , सारे साल पर फैल जाए , हम नेमत-ऐ-आज़ादी की हक़ीक़त को जान लें पहचान लें , इसकी हिफ़ाज़त हम सब ने मिलकर करनी है .... आपस में इन्ही मोहब्बतों , चाहतों , रिश्तों नातों को परवान चढ़ाना है जिसकी ख़ातिर हम ने आज़ादी जैसी यह नेमत हासिल की थी ...
काश के यह बात हम सब की समझ में आ जाए ... काश के .....

ऍ ख़ुदा ! ढलकते हुए एक आंसू की इस दुआ को क़बूल फरमा ले ... आमीन !!

अपने प्यारे वतन हिन्दुस्तान के तमाम देश वासियौं को ...
A happy Independance day !!


तुलू = rise
मुख्तसर वक़्फ़े = a short time
मोमारान-ऐ-वतन = वतन को बनाने वाले
शाक़-ऐ-जैतून = a branch of olive (for peace)
दिल-आवीज़ = दिल को छूने वाले
परवान चढ़ाना = to grow positively

मंगलवार, 12 अगस्त 2008


मोहब्बतें ...


कुछ मोहब्बतें फूलों की तरह होती हैं , ख़ामोश ख़ामोश लेकिन इन की महक इन के होने की पहचान होती है ...
कुछ मोहब्बतें लपकते शोलों की तरह होती हैं के इन में जलने वाले ख़ुद भी जलते हैं और उनके क़रीब रहने वाले भी यह तपिश महसूस करते हैं तो फिर इज़हार की ज़रूरत भी कहाँ रहती है ?
कुछ मोहब्बतों में नदी की सी रवानी होती है ...
और कुछ में मैदानी दर्याऔं जैसी तुग़्यानी ...
कुछ टूटने वाले तारों की तरह होती हैं यानी अनं फ़नं चमक कर फ़ना हो जाने वाली मोहब्बतें ...

कुछ मोहब्बतें क़ुत्बि सितारों की तरह पायेदार और मुस्तक़ल राह दिखाने वाली होती हैं ...
कुछ अंधेरों में रौशनी बन कर जगमगाने वाली मोहब्बतें ...
कुछ आबशारों की तरह होती हैं के जब निछावर होती हैं तो शोर मचाती और दनदनाती हैं ...
और कुछ दूर पर्बतों के दामन से फूटने वाले झरनों की तरह ठंडी मीठी, धीमी धीमी शफ़्फ़ाफ़ मोहब्बतें जो जीने का अज़्म अता करती हैं ...!!

तपिश = गर्मी
रवानी = smooth flowing
तुग़्यानी = excess flowing , flood
अनं फ़नं = फ़ौरन
क़ुत्बि सितारा = polaris
पायेदार और मुस्तक़ल = मज़्बूत और हमेशा का
आबशार = water-fall
शफ़्फ़ाफ़ = bright & shining
अज़्म = aim