मंगलवार, 26 अगस्त 2008


उर्दू के मशहूर शाएर फ़राज़ नहीं रहे


जीवन ज़हर भरा सागर , कब तक अमृत घोलेंगे
नींद तो क्या आएगी फ़राज़ , मौत आए तो सो लेंगे

उर्दू के मशहूर पाकिस्तानी शाएर अहमद फ़राज़ कल सोमवार 25-8-2008 की रात इस्लामाबाद में वफ़ात पा गऐ। अल्लाह उन को जन्नत नसीब करे। आमीन।

उर्दू शाएरी का एक बेहतरीन दौर ख़तम हो गया। अब फ़राज़ जी हम को उसी तरह किताबों में मिलें गे जैसा ख़ुद उन्हों ने कहा था :
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

फ़राज़ साहेब की यह पूरी ग़ज़ल उनको ख़राज-ऐ-अक़ीदत के तौर पर पेश है .........


अब के हम बिछडे तो शाएद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें


ढूंढ उजडे हुए लोगौं में वफ़ा के मोती
यह ख़ज़ाने तुझे मुमकिन हैं ख़राबों में मिलें

ग़म-ऐ-दुन्या भी ग़म-ऐ-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

तू ख़ुदा है ना मेरा इश्क फरिश्तों जैसा
दोनों इंसान हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें

आज हम दार पे खींचे गऐ जिन बातों पर
क्या अजब कल वह ज़माने को निसाबों में मिलें

अब ना वह मैं हूँ ना तू है ना वह माज़ी है फ़राज़
जैसे दो साये तमन्ना के , सराबों में मिलें

4 टिप्‍पणियां:

Pankaj Parashar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Udan Tashtari ने कहा…

शायर अहमद फ़राज़ साहेब को श्रृद्धांजलि!!

subhash Bhadauria ने कहा…

हैदराबादी साहब तस्लीम.
अहमद साहब फ़राज़ उर्दू अदब की आबरू थे और रहेंगे अल्लाह उनकी रूह को सुकून बख़्शे वे ताउम्र बैचैन रहे और ज़ुल्म सहते रहे..
उनकी ग़ज़ल का ये शेर बहुत कुछ कह रहा है-
ढूंढ़ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती,
ये ख़ज़ाने तुझे बेहतर है खराबों में मिलें.
ये उर्दू की मश्हूर बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ है.ज़रा तक्तीअ करकें देखें-
फाइलातुन -फइलातुन- फइला तुन- फेलुन.
ढूंढ़उजड़े - हुएलोगों - मंवफ़ा के -मोती,
ये ख़जाने -तुझबहतर- हख़राबों - ममिलें.
ग़ालिब की मश्हूर ग़ज़ल इसी बहर में हैं
इश्क पर ज़ोर नहीं है ये वो आंतिश ग़ालिब,
जो लगाये न लगे और बुझाये न बने.
आप इस शेर के मिसरे सानी में शायद लिखने में
चूक गये हैं दुरस्त करलें-
ग़मे-दुन्या भी ग़मेयार में शामिल कर लो,
नशा बरपा है शराबें जो शराबों में मिलें.
यहां नशा बरपा नहीं नशा बढ़ता हैं.
हैदराबादी साहब जिसने शराब पी हो वही इस शेर को समझ सकता है. किसी ब्रान्ड के बाद, कोई दूसरी ब्रान्ड का तुरंत पीना जैसे जैसे रम के साथ व्हिस्की इसे कोकटोल कहते हैं.अच्छा खासा पियक्कड़ डावाडोल हो जाता है.मैं अध्यापक के साथ एन.सी.सी.आफीसर भी हूँ. फौज़ के साथ कभी कभी यार दोस्तों में ये हिमाकत कर बैठता हूँ. आप मोमिन लगते हैं सो शायद ही समझे.
अल्लाह हाफ़िज़.

Syed Hyderabadi ने कहा…

डॉ. साहेब , बहुत बहुत शुक्रिया के आप ने नाचीज़ के ब्लॉग को विज़िट किया और अपनी क़ीमती बातों से फ़ैज़्याब किया. सच पूछिए तो आप की उर्दू मुझे शर्मिंदा कर रही है. क्यूँ के तक्तीअ करने में मुझे महारत हासिल नहीं है. मैं शाएरी पढ़ने में दिलचस्पी रखता हूँ लेकिन नसर में लिखने का शौक़ ज़यादा है. बहेर्हाल उर्दू ग़ज़लें देवनागरी लिपि में आपके ब्लॉग पर पढ़ कर हद से ज़यादा ख़ुशी हुयी के उर्दू इमले की एक भी ग़लती आप की तहरीर में नज़र नही आई. मुझे लगता है आप के ब्लॉग का मुस्त्क्ल क़ारी बनना मेरे लिए अशद ज़रूरी है. अहमद फ़राज़ के ताल्लुक़ से आप की बातों ने भी काफ़ी मुतास्सिर किया है.