शनिवार, 23 अगस्त 2008


दिल ... दिल ... दिल ...


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ख़ुदा करे मेरी तरह तेरा किसी पे आए दिल
तू भी जिगर को थाम के कहता फिरे के हाऐ दिल
रोंदो ना मेरी क़बर को इस में दबी हैं हसरतें
रखना क़दम संभाल के देखो कुचल ना जाए दिल

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यह कैसे ख्वाब से जागी हैं आँखें
किसी मंज़र पे दिल जमता नही है

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यह तो मुमकिन ही नही दिल से भुला दूँ तुझ को
जान भी जिस्म में आती है तेरे नाम के साथ

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गर बिछड़ना पड़ा हम से तो जियोगे कैसे
दिल की गेह्रायियौं से इतना हमें चाहा ना करो

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दिल की चोखट पे जो एक दीप जला रखा है
तेरे लौट आने का इमकान सजा रखा है
साँस तक भी नही लेते हैं तुझे सोचते वक़्त
हम ने इस काम को भी कल पे उठा रखा है

रोंदना = to crush
इमकान = imaginable

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

यह तो मुमकिन ही नही दिल से भुला दूँ तुझ को
जान भी जिस्म में आती है तेरे नाम के साथ
lekin insan ki majburiyan bahut hain. aur dil .... ha ha ha