रविवार, 7 दिसंबर 2008


9th-ज़िलहज : अरफ़ा का दिन


ज़िलहज , इस्लामी महीनों का 12th और आख़री महिना है. हज इसी महीने की 8 से 12 तारीख़, जुमला 5 दिनों में अंजाम पाता है. हज का दूसरा दिन यानि 9-ज़िलहज "अरफ़ात" का दिन कहलाता है. (इस साल 9-ज़िलहज, 7-Dec.-2008 को आया है.)
तमाम हाजी इस दिन अरफ़ात के मैदान में जमा होते हैं. [अरफ़ात का मैदान , मक्का मुकर्रमा से 14.4 KM (9-miles) दूर है.]

अरफ़ात के मैदान में चारों तरफ़ निशाँ लगा दिए गए हैं. क्यूँ के जो कोई हाजी 9-ज़िलहज को इस मैदान के अंदर दाख़िल ना हो पाये उसका हज नही होता. मैदान-ऐ-अरफ़ात दुआओं के क़ुबूल होने का मुक़ाम है. इसलिए तमाम हाजी इस मैदान में ज़्यादा से ज़्यादा दुआएं मांगते हैं.
9-ज़िलहज की शाम सूरज ग़ुरूब होने के बाद हाजी इस मैदान से निकलना शुरू हो जाते हैं.

जो मुसलमान हज पर नही होते वह इस दिन रोज़ा रखते हैं. क्युंके हमारे नबी करीम (सल्लल लाहू अलैहि वसल्लम) का फ़रमान है के : अरफ़ा के दिन का रोज़ा पिछले और अगले, दो साल के गुनाहों को मिटा देता है (इन-शा-अल्लाह).

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