रविवार, 28 जून 2009


अमावस की रात



शाम होते ही सितारे और हम
एक ही चीज़ को ढूंढते हैं हम

दोनों के चहरे पर उदासी है
एक सा लगता है दोनों का ग़म

वह तो हैं आसमान में सरगर्दां
और सफ़र करते हैं ख़याल में हम

तारों के साथ बहुत तारे हैं
हम सफ़र में हैं अकेले एकदम

चाँद के हैं तलाश में तारे
और चंदा को ढूंढते हैं हम

चाँद को पा के थम गए तारे
पर मेरी फ़िक्र जाए कैसे थम

तारों के चहरे पर ख़ुशी लौटी
आँख नय्यर की रहेगी पुर नम

poet = फ़हीम नय्यर

1 टिप्पणी:

राज भाटिय़ा ने कहा…

चाँद को पा के थम गए तारे
पर मेरी फ़िक्र जाए कैसे थम बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना.
धन्यवाद