काफ़ी दिन बाद ब्लॉग पर हाज़री दे रहा हूँ ... एक ऐसी खूबसूरत ग़ज़ल के साथ जिसके शाएर का नाम मुझे मालूम नहीं है.
अर्ज़ किया है ...........
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई
शर्मा के झुकी नज़रें , होंटों पे वह बात आई
पैग़ाम बहारों का आखिर मेरे नाम आया
फूलों ने दुआएं दीं , तारों का सलाम आया
आप आये तो महफ़िल में नग़्मों की बरात आई
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई
यह महकी हुयी जुल्फें , यह बहकी हुयी सांसें
नींदों को चुरा लेंगी यह नींद भरी आँखें
तक़दीर मेरी जागी , जन्नत मेरे हाथ आई
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई
चहरे पे तबस्सुम ने एक नूर सा छलकाया
क्या काम चरागों का जब चाँद निकल आया
लो आज दुल्हन बन के पहलु में हयात आई
जिस रात के ख्वाब आये , वह ख्वाबों की रात आई
शर्मा के झुकी नज़रें , होंटों पे वह बात आई
गुरुवार, 14 मई 2009
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