सोमवार, 22 दिसंबर 2008
पागल आंखों वाली लड़की
पागल आंखों वाली लड़की
इतने महेंगे ख़्वाब ना देखो
थक जाओगी
कांच से नाज़ुक ख़्वाब तुम्हारे
टूट गए तो पछताओगी
तुम क्या जानो ...!
ख़्वाब... सफ़र की धुप के तीशे
ख़्वाब... अधोरी रात का दोज़ख़
ख़्वाब... ख़यालों का पछतावा
ख़्वाबों का हासिल = तन्हाई
महेंगे ख़्वाब खरीदना हों तो
आँखें बेचना पड़ती हैं
रिश्ते भूलना पड़ते हैं
अंदेशों की रेत ना फानको
ख़्वाबों की ओट सराब ना देखो
प्यास ना देखो
इतने महेंगे ख़्वाब ना देखो
थक जाओगी
.....
तीशा = कुल्हाड़ी
दोज़ख़ = नरक
अंदेशा = चिंता
poet = मोहसिन नक़वी
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11 टिप्पणियां:
bahut khoob...!
behad khoobsoorat likha hai aapne.
कुव्वत ए नजर बचाकर रखो
खवाब तो लाखों दिख जाएंगे
बिक जायेंगी सारी उम्रें
न बँद आंखों में सजाकर रखो
कुव्वत ए नजर बचाकर रखो
न फेरो माजी की ओर
न कल की भोर की उम्मीदों में
इस पल की रगों में समाकर रखो
kya kahne. khoobsoorat!!!
बहुत खूब.......कुछ कुछ ऐसा ही कभी परवीन शाकिर ने भी लिखा था.......
WAAH ! Lajawaab !
बहुत ही बढ़िया
वाह किन शब्दों में इस रचना की तारीफ करुँ। अद्भुत है जी।
बहुत खुब आप ने तो इसे गुन गुनाने पर मजबुर कर दिया, आप की यह गजल दिल मे जा बसी.
धन्यवाद
कंचन सिंह चौहान, विनय, poemsnpuja, तसलीम अहमद, रंजना...
आप सब ब्लॉग पर आए और इस रचना की खुले दिल से तारीफ़ की, मैं आप सब का सच मुच बहुत शुक्र-गुज़ार हूँ.
Rajey Sha...
वाह वाह राजे भय्या, क्या ख़ूब कहा और हस्बे-हाल कहा. बहुत ख़ूब.
डॉ .अनुराग...
अनुराग जी , आप ने परवीन शाकिर को याद दिला दिया. हाँ मुझे भी याद है. मैं उनकी वह रचना भी ढूंढ कर ज़रूर लगाऊंगा
सुशील कुमार छौक्कर...
सुशील कुमार जी , जी हाँ मुझे भी यह रचना अद्भुत लगी थी
राज भाटिय़ा...
भाटिय़ा जी , आप ने सही कहा, उर्दू लीपी से इसको देवनागरी में लिखते हुए मैं ख़ुद भी गुनगुनाने लगा था.
ख़्वाब... सफ़र की धुप के तीशे
ख़्वाब... अधोरी रात का दोज़ख़
ख़्वाब... ख़यालों का पछतावा
बेहद खूबसूरत लिखा है ...
ek ladki meri aankhon ke aage aa gai........bahut hi achhi dil ko chhunewali rachna.........
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