(माफ़ी चाहता हूँ के एक दिन देर से मुबारकबाद दे रहा हूँ)
रौशनी के त्यौहार के इस रंगीन मोक़े पर
नज़ीर अकबराबादी
(असल नाम : वली मोहम्मद, born:1735, death:1830)
की एक मशहूर नज़्म "दिवाली" याद आ रही है जो हम ने अपने बचपन में पढ़ी थी। आप भी इस नज़्म के कुछ अशार से मह्ज़ूज़ होईये गा ।।
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हर एक मकान में जला फिर दिया दिवाली का
हर एक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का
सभी के दिल में समाँ भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा ख़ुश लगा दिवाली का
अजब बहार का है दिन बना दिवाली का
जहाँ में यारो, अजब तरह का है यह त्यौहार
किसी ने नक़्द लिया और कोई करे है उधार
खिलोने, कलियों, बताशों का गरम है बाज़ार
हर एक दुकान में चरागौं की हो रही है बहार
सभों को फ़िक्र है जा बजा दिवाली का
मिठायों की दुकानें लगा के हलवाई
पुकारते हैं के : लाला ! दिवाली है आई
बताशे ले कोई , बर्फी किसी ने तुलवाई
खिलोने वालों की उन से ज़्यादा बन आई
गोया उन्ही के वां राज आ गया दिवाली का
2 टिप्पणियां:
Bahut sundar sabd chitran. Deepavali ke deepakon ka prakash aapke jeevan path ko aalokit karta rahe aur aapke lekhan ka margdarshan karta rahe, yahi shubh kamnayen.
दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
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