सोमवार, 15 सितंबर 2008


आप की याद आती रही ...


मक़्दूम मोहिउद्दीन की एक मशहूर ग़ज़ल पेश-ऐ-खिदमत है

आप की याद आती रही रात भर
चश्म-ऐ-नम मुस्कुराती रही रात भर

रात भर दर्द की शमा जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर

बांसुरी की सुरेली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रात भर

याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर

कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा
कोई आवाज़ आती रही रात भर


चश्म-ऐ-नम = आंसू भरी आँख

3 टिप्‍पणियां:

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

आप की याद आती रही रात भर
चश्म-ऐ-नम मुस्कुराती रही रात भर

रात भर दर्द की शमा जलती रही
ग़म की लौ थरथराती रही रात भर

सुब्हान अल्लाह...

Udan Tashtari ने कहा…

मेरी पसंदीदा गज़ल. आभार.

Dr. Nazar Mahmood ने कहा…

good presentation, thanks for letting us read a nice peace of urdu poetry