गुरुवार, 22 जनवरी 2009


तू ने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था


हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह
सिर्फ़ एक बार मुलाक़ात का मोक़ा दे दे

मेरी मंजिल है कहाँ , मेरा ठिकाना है कहाँ
सुबह तक तुझ से बिछड़ कर मुझे जाना है कहाँ
सोचने के लिए एक रात का मोक़ा दे दे

अपनी आंखों में छुपा रखे हैं जुगनू मैंने
अपनी पलकों पर सजा रखे हैं आंसू मैंने
मेरी आंखों को भी बरसात का मोक़ा दे दे

आज की रात मेरा दर्द-ऐ-मोहब्बत सुन ले
कपकपाते हुए होंटों की शिकायत सुन ले
आज इज़हार-ऐ-ख़यालात का मोक़ा दे दे

भुलाना था तो यह इक़रार किया ही क्यूँ था
बे-वफ़ा तू ने मुझे प्यार किया ही क्यूँ था
सिर्फ़ दो चार सवालात का मोक़ा दे दे


poet = क़ैसर-उल-जाफ़री

3 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

bahut badiyaa tarah se shabdon ko buna hai badhaai

Vinay ने कहा…

बहुत ख़ूब साहब, क्या चुनिंदा नगमा लाये हैं!

---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम

Saleem Khan ने कहा…

bahut achchh blog

kabhi aaeeye hamari anjuman men bhi

http://hamarianjuman.blogspot.com