हज़ारों दुःख पड़ें सहना , मोहब्बत मर नही सकती
है तुम से बस यही कहना , मोहब्बत मर नही सकती
तेरा हर बार मेरे ख़त को पढ़ना और रो देना
मेरा हर बार लिख देना , मोहब्बत मर नही सकती
किया था हम ने कैम्पस की नदी पर एक हसीं वादा
भले हम को पड़े मरना , मोहब्बत मर नही सकती
जहाँ में जब तलक पंछी चहकते उड़ते फिरते हैं
है जब तक फूल का खिलना , मोहब्बत मर नही सकती
पुराने अहद को जब जिंदा करने का ख़्याल आए
मुझे बस इतना लिख देना , मोहब्बत मर नही सकती
वह तेरा हिज्र की शब् , फ़ोन रखने से ज़रा पहले
बहुत रोते हुए कहना , मोहब्बत मर नही सकती
अगर हम हसरतों की क़ब्र में ही दफ़न हो जाएँ
तो यह कुत्बों पे लिख देना , मोहब्बत मर नही सकती
पुराने राब्तों को फिर नऐ वादे की खाहिश है
ज़रा एक बार तो कहना , मोहब्बत मर नही सकती
गए लम्हात फ़ुर्सत के , कहाँ से ढूंढ कर लाऊँ
वह पहरों हाथ पर लिखना , मोहब्बत मर नही सकती
poet = वसी शाह
बुधवार, 26 नवंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
4 टिप्पणियां:
अपने मनोभावों को बहुत बढिया ढंग से प्रस्तुत किया है।
वाह साहब, बहुत उम्दा गज़ल लाये हैं वसी साहेब की. आभार इसे पढ़वाने का.
वसी साहब की गजल को पढवाने का शुक्रिया।
क्या बात है इस गजल मै, बहुत ही उमदा, वसी साहब की इस गजल के लिये आप का दिली धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें