तांगे वाला
ले के बीड़ी का एक लंबा कश
एक चाबुक लगा के घोड़े को
तांगे वाला मेरा कहने लगा
देख कर एक हसीं जोड़े को
बाबु जी एक दिन का ज़िक्र है यह
मैंने रेशम की चमकती लुंगी
आँख पर कुछ झुका के बाँधी थी
यह मेरी आँख छुप गई सी थी
उस सड़क पर इस आँख ने देखा
चुलबुली प्यारी एक हसीना को
"आजा कुड़ी, इधर ज़रा" कह कर
मार दी आँख उस हसीना को
अपने गोरे से हाथ का थप्पड़
मेरे मुं पर जमा दिया उस ने
यूँ लगा जैसे गरम एक बूसा
मेरे मुं पर लगा दिया उस ने
उस हसीं हाथ की हसीं खुशबू
अब भी आती है सूंघ लेता हूँ
दो घड़ी बंद कर के मैं आँखें
अपने तांगे में ऊंघ लेता हूँ
और क्या चाहिए था बाबू जी !!
poet = राजा महदी अली खान
बुधवार, 21 जनवरी 2009
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2 टिप्पणियां:
Kya baat hai! Aakhir taangewale ka bhi dil hi to hai.
अरे नही भाई वो तो पांच बजे का टाईम दे गई...:)
धन्यवाद
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